अश्विनी मुद्रा : विधि, लाभ एवं सावधानियां Ashwini Mudra in Hindi

Ashwini Mudra in Hindi -अश्विनी मुद्रा योग से सम्बन्धित है। हमारे स्वास्थ्य के लिए योग चाहे व किसी भी प्रकार हो लाभकारी ही होता है।

वर्षों से ऋषि मुनियों अपने को स्वस्थ्य एवं निरोगी रहने के लिए कई प्रकार के योगासन, ध्यान, प्राणायाम, मुद्राओं और आसनों का प्रयोग करते रहे हैं और हमें भी करने की सलाह देते हैं जिससे हम अपने को भी उन्हीं के समान स्वस्थ रख सकें।

योग हर दशा में हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी ही होती है

आश्विनी मुद्रा का सरल भाषा में अर्थ है अश्विनी अर्थात घोड़ा मतलब घोड़े की तरह क्रियाओं को करना।

जिस प्रकार घोड़ा अपने गुदाद्वार को खोलते और बंद करता रहता है अर्थात जिस प्रकार सिकोड़ता और ढीला छोड़ता है इसकी क्रिया को अश्विनी मु्द्रा कहा जाता है।

इसी कारण से घोड़ा अन्य जानवरों से शक्तिशाली होता है।

जिस तरह से घोड़ा अपने गुदाद्वार को बार-बार सिकोड़ता और ढीला छोड़ता है उसी तरह गुदाद्वार को सिकोड़ना और फैलने की क्रिया को अश्विनी मुद्रा कहते है।

यह एक बहुत ही आसान क्रिया है।

आगे के लेख में हम आश्विनी मुद्रा अर्थात इस योग को कैसे करें और इससे होने वाले लाभों के बारे में जानेंगे। इस मुद्रा का विवरण हमारे ग्रंथों में भी मिलता है।

आकुंचयेद् गुदाद्वार प्रसारयेत् पुन: पुन:। सामवेदाश्विनी मुद्रा शक्तिप्रबोधकारिणी।। अश्विनोपरमा मुद्रा गुहारोग विनाशिनी। बलपुष्टिरीचव अकालमरणंहरेत्।।

Ashiwini Mudra Benefits in Hindi

अश्विनी मुद्रा की विधि: Ashwini Mudra Steps in Hindi

अश्विनी मुद्रा करने की विधि के 2 प्रकार हैं। दोनों ही तरह में कोई खासा अन्तर नहीं है। कुछ नहीं तरह के बदलाव इनको आपस में अलग करते हैं।

आगे हम इनके बारे में आपको बताने जा रहे हैं की अश्विनी मुद्रा कैसे की जाती है?

प्रथम तरह की विधि First Process : Technique 1 Ashwini Mudra in Hindi

इस प्रक्रिया को करने के लिए इसे करने के लिए कागसन की अवस्था में बैठना होता है अर्थात सरल भाषा में कहेत तो जिस प्रकार आप टायलेट में बैठते हैं उसकी अवस्था में बैठना होता है।

फिर अपने गुदाद्वार को खींचकर मूलबंध की पोज़िशन में थोड़ी देर के लिए उसी अवस्था में रखना होता है और फिर उसे ढीला छोड़ दें।

इस अवस्था को लगातार कुछ समय तक करते रहना चाहिए जब तक आप इसे आसानी से कर रहे हैं फिर कुछ समय के लिए आराम पूर्व बैठ लेना चाहिए।

दुसरी तरह की विधि Second Process : Technique 2 Ashwini Mudra in Hindi

इस प्रक्रिया में प्रथम तरह की क्रिया से कुछ बदलाव हैं।

इस विधि से अश्विनी मुद्रा से को करने के लिए आपको जमीन पर चटाई बिछाकर अपने सिर को पूर्व दिशा की ओर रखें।

अब साँस को बाहर निकालें और पेट को 3-5 बार अंदर बाहर करें और गुदाद्वार को 25 बार सिकोड़े और ढीला छोड़े।

इसको करने के बाद फिर साँस लें और बाहर छोड़ें और गुदाद्वार को अंदर बाहर करें। इस क्रिया को को आप अपनी इच्छाशक्ति के अनुसार करें।

अश्विनी मुद्रा किसे करना चाहिए ?

योग क्रिया को कोई भी कर सकता है बशर्ते वह इसके पूरे नियमों का पालन करे। उसी प्रकार अश्विनी मुद्रा को भी कोई भी कर सकता है चाहे वह बच्चा हो या बूढ़ा, महिला हो या पुरूष।

यदि आपको उच्च रक्तचाप अर्थात हाई ब्लड प्रेसर की परेशानी है तो आपको इस मुद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए इससे आपको नुकसान हो सकता है। यदि फिर भी आप करना चाहे तो आप किसी अच्छे योगाचार्य के अन्तर्गत इस योग को बहुत ही कम मात्रा एवं धीमे से करें।

यदि आप गर्भवती महिला है और आप अश्विनी मुद्रा का अभ्यास करना चाह रही हैं तो आपको किसी अच्छे योगाचार्य की निगरानी में इस योग मुद्रा का अभ्यास करना चाहिए।

आप अगर अस्थमा के मरीज है या आपको कोई फेफड़ों से सम्बन्धित रोग है तो आपको इस योग मुद्रा से दूरी बनाये रखनी चाहिए।

इस मुद्रा को आपको खाली पेट ही करना चाहिए। इसको करने का सबसे सही समय प्रात:काल ही हो सकता है। यह मुद्रा शरीर में गर्मी को बढ़ाने का कार्य करती है अत: सुबह के समय इसको करना बहुत लाभकारी होता है।

अश्वनी मुद्रा को गर्मी के मौसम में कम मात्रा में करना चाहिए क्योंकि यह शरीर में अतिरिक्त गर्मी पैदा करती है।

अश्विनी मुद्रा कितने देर तक करें ?

यदि आप बिल्कुल स्वस्थ्य हैं या फिर कुछ ज्यादा गम्भीर बिमारी नहीं है तो आप इस मुद्रा को दिन में 1 समय 30 से 35 बार तक कर सकते हैं। यदि आपको धातुरोग, प्रजनन अंगों की परेशानी, स्वप्नदोष्ज्ञ, बबासीर आदि है तो आपको यह मु्द्रा दिन में दो बार 50 से 100 के बीच करनी चाहिए।

अश्विनी मुद्रा से लाभ Ashwini Mudra Benefits in Hindi

अश्विनी मुद्रा के नियमित अभ्यास से गुदा के सभी रोग (जैसे बवासीर, अर्श, भगंदर आदि) सही हो जाते हैं और शरीर की शक्ति भी बढ़ जाती है।

यह मुद्रा नपुंकसकता को भी दूर करने में मदद करती है।

शीघ्रपतन की समस्या को रोकने में प्रभावी होती है। घोड़े मे इतनी शक्ति और फुर्ती इसी मुद्रा के कारण होती है।

इस मुद्रा को करने से उम्र बढ़ भी बढ़ सकती है।

ऐसा भी कहा जाता है कि की इसका निरन्तर अभ्यास करने से कुण्डलिनी का जागरण होता है। इस मुद्रा को करने से मानिसिक शक्ति भी बढ़ती है।

अर्थात दिमाग तेल होता है और साथ बवासीर और कब्ज जैसी पेट की समस्यायें दूर हो जाती हैं।

इस मुद्रा को अपनी इच्छाशक्ति के अनुसार करना चाहिए। जरूरी से ज्यादा खिचतानी करने से कोई लाभ नहीं मिल पाता है।

इस मुद्रा को आपने रोज करना चाहिए।

अश्विनी मुद्रा में सावधानियां – Ashwini Mudra Precautions in Hindi

यदि आपके गुदाद्वार में किसी तरह की गंभीर बिमारी है तो आपको यह अश्विनी मुद्रा किसी जानकार योग शिक्षक की सलाह अनुसार ही करना चाहिए।

अश्विनी मुद्रा के बारे में बताते हुए लाइफ गुरु सुरक्षित कहते हैं कि जैसे अश्व (घोड़ा) लीध करने के बाद अपने गुदाद्वार को बार-बार सिकोड़ता ढीला करता है, उसी प्रकार गुदाद्वार को सिकोड़ना और फैलाने की क्रिया को ही अश्विनी मुद्रा कहते हैं।

घोड़े में इतनी शक्ति और फुर्ती का रहस्य यही मुद्रा है।

इसलिए इंजन की ताकत अश्व शक्ति (हॉर्स पावर) से मापी जाती है।

यह ऐंटी ग्रेविटी अभ्यास है।

इससे शरीर को चलाने वाली ऊर्जा बढ़ती है। सभी अंगों को बल मिलता है, शरीर की ताकत बढ़ती है, नपुंसकता दूर होकर पौरुष शक्ति बढ़ने लगती है।

हृदय को बल देने वाली यह क्रिया हर्निया, मूत्र दोष, गुदा सम्बन्धी रोग, बवासीर, कब्ज व स्त्री रोगों में बड़ी उपयोगी है।

इसके अभ्यास से मूलाधार चक्र में स्थित कुण्डलिनी शक्ति जागने लगती और हमें लम्बे समय तक युवा बनाए रखती है।

अश्विनी मुद्रा करने के चिकित्सकीय फायदे Benefits of Ashwani Mudra

  • अश्विनी मुद्रा के नियमित अभ्यास से गुदा से संबंधित बिमारियों जैसे बवासीर (piles), गुदा में दर्द  आदि में फायदा होता है।
  • अश्विनी मुद्रा के लगातार करने से मूत्र संस्थान से जुड़े हुये रोग जैसे रुक—रुक कर बार—बार पेशाब आना, पेशाब में जलन होना, धातु गिरना, स्वपनदोष (night fall), शीघ्रपतन आदि अन्य समस्याओं में भी लाभ होता है।
  • अश्विनी मुद्रा का अभ्यास करने से व्यक्ति की रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है और जीवनी शक्ति भी बढ़ती है। इस कारण से व्यक्ति निरोग रहता है ।
  • अश्विनी मुद्रा को नियमित करने से कब्ज (constipation) की समस्या के साथ ही पाचन से जुड़ी समस्याओं में भी फायदा होता है।
  • अश्विनी मुद्रा व्यक्ति की स्मरण शक्ति को भी बढ़ाने में मदद करती है।

अश्वनी मुद्रा का आध्यात्मिक फायदा

ऐसा माना जाता है कि अश्वनी मुद्रा को नियमित करने से कुंडलिनी शक्ति को जागृत किया जा सकता है। इसमें मूलाधार केंद्र जागृत होता है व कुंडलिनी शक्ति मूलाधार केंद्र से ऊपर की ओर बढ़ती है। इसी कारण से अश्विनी मुद्रा करने से व्यक्ति में आध्या​त्म की ओर रूचि बढ़ती है।

अश्विनी मुद्रा करते समय बरती जाने वाली सावधानियां

  • यदि अश्विनी मुद्रा करते समय आपको मल या मूत्र का का अहसान हो तो उसे रोकना नहीं चाहिए।
  • इस मुद्रा को करने से पहले आप मल मूत्र का त्याग करें और जब आपका पेट खाली हो जाये तो ही इसका अभ्यास करें।
  • यदि आपको किसी प्रकार का गुदा मार्ग में कोई रोग हो तो इसके लिए योग्य गुरु की देखरेख में ही इसका अभ्यास करें ।

अश्विनी मुद्रा किसे करना चाहिए ?

योग क्रिया को कोई भी कर सकता है बशर्ते वह इसके पूरे नियमों का पालन करे। उसी प्रकार अश्विनी मुद्रा को भी कोई भी कर सकता है चाहे वह बच्चा हो या बूढ़ा, महिला हो या पुरूष।

यदि आपको उच्च रक्तचाप अर्थात हाई ब्लड प्रेसर की परेशानी है तो आपको इस मुद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए इससे आपको नुकसान हो सकता है। यदि फिर भी आप करना चाहे तो आप किसी अच्छे योगाचार्य के अन्तर्गत इस योग को बहुत ही कम मात्रा एवं धीमे से करें।

यदि आप गर्भवती महिला है और आप अश्विनी मुद्रा का अभ्यास करना चाह रही हैं तो आपको किसी अच्छे योगाचार्य की निगरानी में इस योग मुद्रा का अभ्यास करना चाहिए।

आप अगर अस्थमा के मरीज है या आपको कोई फेफड़ों से सम्बन्धित रोग है तो आपको इस योग मुद्रा से दूरी बनाये रखनी चाहिए।

इस मुद्रा को आपको खाली पेट ही करना चाहिए। इसको करने का सबसे सही समय प्रात:काल ही हो सकता है। यह मुद्रा शरीर में गर्मी को बढ़ाने का कार्य करती है अत: सुबह के समय इसको करना बहुत लाभकारी होता है।

अश्वनी मुद्रा को गर्मी के मौसम में कम मात्रा में करना चाहिए क्योंकि यह शरीर में अतिरिक्त गर्मी पैदा करती है।

अश्विनी मुद्रा कब करना चाहिए ?

अश्विनी मुद्रा को आप किसी भी समय कर सकते हैं। लेकिन यह विशेष रूप से ध्यान दें कि आपका पेट पूरी तरह से खाली हो। इसके लिए आपको किसी समतल जगह पर आसन बिछाकर ही इस मुद्रा को करना चाहिए। अपनी क्षमता से अधिक इस मुद्रा को न करें इससे आपको हानि हो सकती है।

अगर आप पहली बार इसको कर रहे हैं तो शुरुआत में एक बार में २० बार ही अश्विनी मुद्रा को करना चाहिए एवं गुदा को ३ से ४ सेकंड से ज्यादा नहीं सिकोड़ना चाहिए। इसको लगातार करने करने पर या इसके अभ्यस्त होने पर आप 100 बार भी इसको कर सकते हैं।

अश्विनी मुद्रा योग मुद्रा है। इसका निरंतर अभ्यास करने से अधिक ऊर्जा और ताकत मिलती है। ऐसा माना गया है कि अश्वनी मुद्रा को लगातार करने से व्यक्ति में घोड़े की तरह ताकत आ जाती है।

अश्विनी मुद्रा और वज्रोली मुद्रा में क्या अंतर हैं?

अश्विनी मुद्रा एक प्राणायाम तकनीक है जिसमें आपको गुदा मांसपेशियों को आपस में कसने और छोड़ने का अभ्यास करना पड़ता है। इसका उद्देश्य मूलबंद क्षेत्र को मजबूत करना और पेट के आस-पास की मांसपेशियों को टोन करना होता है।

वज्रोली मुद्रा भी एक प्राणायाम तकनीक है जो दम्भ और मूत्रमार्ग के उपचार में मदद करने के लिए प्रयुक्त होती है। इस तकनीक में आपको जीभ को उच्च मांसपेशियों और गले के पिछले हिस्से के साथ मिलाना होता है और फिर निम्न श्वसन के समय इसे छोड़ना होता है।

संक्षिप्त में, अश्विनी मुद्रा गुदा मांसपेशियों को टोन करने और मूलबंद क्षेत्र को मजबूत करने में मदद करती है, जबकि वज्रोली मुद्रा ऊर्जा संचयन और शक्ति को बढ़ावा देने में सहायक होती है।

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